Thursday, April 15, 2010

Garhwali youth ki sachaeeeeeee

खिला एक फूल फिर इन पहाडों में.
मुरझाने फिर चला delhi की गलियों में.
graduate की डिग्री हाथ में थामे निकल गया.
फिर एक uttrakhandi लड़का जिंदा लांश बन गया.......

खो गया इस भागती भीड़ में वो.
रोज़ मारा बस के धक्कों में वो.
दिन है या रात वो भूल गया.
फिर एक uttrakhandi लड़का जिंदा लांश बन गया......

देर से रात घर आता है पर कोई टोकता नहीं.
भूख लगती है उसे पर माँ अब आवाज लगाती नहीं.
कितने दिन केवल चाय पीकर वो सोता गया.
फिर एक uttrakhandi लड़का जिंदा लांश बन गया......

अब साल में चार दिन घर जाता है वो.
सारी खुशियाँ घर से समेट लाता है वो.
अपने घर में अब वो मेहमान बन गया
फिर एक uttrakhandi लड़का जिंदा लांश बन गया......

मिलजाए कोई गाँव का तो हँसे लेता है वो.
पूरी अनजानी भीड़ में उसे अपना लगता है वो.
गढ़वाली गाने सुने तो उदास होता गया..
फिर एक uttrakhandi लड़का जिंदा लांश बन गया......

न जाने कितने फूल पहाड के यूँ ही मुरझाते हैं..
नौकरी के बाज़ार में वो बिक जाते है.
रोते हैं माली रोता है चमन..
उत्तराखंड का फूल उत्तराखंड में महकेगा की नहीं...............?

Garhwali youth

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