Monday, May 9, 2011
गढ़वाल कुमाऊँ के नाथपंथी देवता
गढ़वाल व कुमाओं में छटी सदी से नाथपंथी अथवा गोरखपंथी प्रचारकों का आना शुरू हुआ और बारवीं सदी तक इस पंथका पूरे समाज में एक तरह से राज रहा इसे सिद्ध युग भी कहते हैंकुमाओं व गढ़वाल और नेपाल में निम्न नाथपंथी देवताओं की पूजा होती है और उन्हें जागरों नचाया भी जाता है१- नाद्वुद भैरव : नाद का अर्थ है पहली आवाज और नाद वुद माने जो नाद का जानकार है जो नाद के बारे में बोलता है . अधिकतर जागरों में नाद्वुद भैरव को जागरों व अन्य मात्रिक तांत्रिक क्रियाओं में पहले स्मरण किया जाता है , नाद्वुद भगवान शिव ही हैंपैलो का प्रहर तो सुमरो बाबा श्री नाद्वुद भैराऊं.... राम्छ्ली नाद बजा दो ल्याऊ. सामी बज्र दो आऊ व्भुती पैरन्तो आऊ . पाट की मेखळी पैरंतो आऊ . ब्ग्मरी टोपी पैरन्तो आऊ . फ्तिका मुंद्रा पैरंतो आऊ ...२- भैरव : भैरव शिव अवतार हैं. भैरव का एक अर्थ है भय से असीम सुख प्राप्त करना . गाँव के प्रवेश द्वार पर भैरव मुरती स्थापित होती है भैरव भी नचाये जाते हैंएक हाथ धरीं च बाबा तेरी छुणक्याळी लाठीएक हाथ धरीं च बाबा तेरी तेज्मली को सोंटाएक हाथ धरीं च बाबा तेरी रावणी चिंताकन लगायो बाबा तिन आली पराली को आसन.....३- नरसिंह : यद्यपि नरसिंघ विश्णु अवतार है किन्तु गढवाल कुमाओं में नरसिंह नाथपंथी देवता है और कथा संस्कृत आख्यानो से थोड़ा भिन्न है . कुमाऊं - गढवाल में नरसिंह गुरु गोरखनाथ के चेले /शिष्य के रूप में नचाये जाते है जो बड़े बीर थे नरसिंह नौ है -इंगले बीर नरसिंघ, पिंगला बीर नरसिंह, जाती वीर नरसिंघ , थाती बीर नरसिंघ, गोर वीर नरसिंह, अघोर्बीर नरसिंघ, चंद्बीर नरसिंघ, प्रचंड बीर नरसिंघ, दुधिया नरसिंघ, डोडिया नरसिंह , नरसिंघ के हिसाब से ही जागरी जागर लगा कर अलग अलग नर्सिंगहो का आवाहन करते हैजाग जाग नरसिंह बीर जाग , फ़टीगु की तेरी मुद्रा जागरूपा को तेरा सोंटा जाग ख्रुवा की तेरी झोली जाग.............४- मैमंदा बीर : मैम्न्दा बीर भी नाथपंथी देवता है मैमंदा बीर मुसलमानी-हिन्दू संस्कृति मिलन मेल का रूप है मैम्न्दा को भी भैरव माना जाता हैमैम्न्दा बीरून वीर पीरून पीर तोड़ी ल्यासमी इस पिण्डा को बाण कु क्वट भूत प्रेत का शीर५- गोरिल : गोरिल कुमौं व गढ़वाल का प्रसिद्ध देवता हैं गोरिल के कई नाम हैं - गोरिल, गोरिया , गोल, ग्विल्ल , गोल , गुल्ली . गोरुल देवता न्याय के प्रतीक हैं .ग्विल्ल की पूजा मंदिर में भी होती है और घड़े ल़ा लगा कर भी की जाती हैॐ नमो कलुवा गोरिल दोनों भाई......ओ गोरिया कहाँ तेरी ठाट पावार तेरी ज़ातचम्पावत तेरी थात पावार तेरी ज़ात६- कलुवा वीर ; कलुवा बीर गोरुल के भाई है और बीर हैं व घड़ेल़ा- जागरों में नचाये जाते हैंक्या क्या कलुवा तेरी बाण , तेरी ल़ाण .... अजी कोट कामळी बिछ्वाती हूँ .....७- खेतरपाल : माता महाकाली के पुत्र खेतरपाल (क्षेत्रपाल ) को भी नचाया जाता हैदेव खितरपाल घडी -घडी का बिघ्न टाळमाता महाकाली की जाया , चंड भैरों खितरपालप्रचंड भैरों खितरपाल , काल भैरों खितरपालमाता महाकाली को जायो , बुढा महारुद्र को जायोतुम्हारो द्यां जागो तुम्हारो ध्यान जागो ८- हरपाल सिद्ध बाबा भी कलुवा देवता के साथ पूजे जाते हैं नचाये जाते हैन्गेलो यद्यपि क्ष व कोल समय के देवता है किन्तु इनकी पूजा भी या पूजा के शब्द सर्वथा नाथपंथी हैं यथान्गेलो की पूजा मेंउम्न्मो गुरु का आदेस प्रथम सुमिरों नाद भैरों .....निरंकार ; निरंकार भी खश व कोली युद के देवता हैं किन्तु पुजाई नाथपंथी हिसाब से होती है और शब्द भी नाथपंथी हैं
Thursday, May 5, 2011
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,बर्फ के गोले, सब कुछ,अब वहां "मोबाइल शॉप","विडियो पार्लर" हैं,फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है......जब मैं छोटा था,शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करतीथीं...
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,घंटों उड़ा करता था,वो लम्बी "साइकिल रेस",वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
...
जब मैं छोटा था,शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी, दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,वो दोस्तों के घर का खाना,वो लड़कियों की बातें,वो साथ रोना...अब भी मेरे कई दोस्त हैं,पर दोस्ती जाने कहाँ है,जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन,नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं....
जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब internet, office, से फुर्सत ही नहीं मिलती..शायद ज़िन्दगी बदल रही है....
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है...
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते"...ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में हम सिर्फ भाग रहे हैं..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,बर्फ के गोले, सब कुछ,अब वहां "मोबाइल शॉप","विडियो पार्लर" हैं,फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है......जब मैं छोटा था,शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करतीथीं...
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,घंटों उड़ा करता था,वो लम्बी "साइकिल रेस",वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
...
जब मैं छोटा था,शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी, दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,वो दोस्तों के घर का खाना,वो लड़कियों की बातें,वो साथ रोना...अब भी मेरे कई दोस्त हैं,पर दोस्ती जाने कहाँ है,जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन,नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं....
जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब internet, office, से फुर्सत ही नहीं मिलती..शायद ज़िन्दगी बदल रही है....
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है...
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते"...ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में हम सिर्फ भाग रहे हैं..
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