Friday, April 22, 2011

२०१० का आंसू

२०१० का आंसू


छेन्द स्वयंबर का निर्भगी राखीबिचरी येखुली रह ग्याईतमशु देखणा की "लाइव " चुप-चापहम्थेय भी अब सैद आदत सी व्हेय ग्याईभाग तडतूडू छाई कन्नू बल कसाब कु ,वू भी अब अतिथि देव व्हेय ग्याईलोकतंत्र की हुन्णी चा रोज यख हत्या ,इन्साफ अध रस्ता म़ा बल अध्-मोरू व्हेय ग्याईकॉमन- वेल्थ का छीं आदर्श भ्रष्ट ,सरकार बल राजा की गुलाम व्हेय ग्याईमन छाई घंगतोल म़ा की क्या जी करूँ " गीत ",तबरी अचाणचक से बल शीला ज्वाँन व्हेय ग्याईघोटालूँ कु २०१० सुरुक सुरुक मुख छुपे की ,अंतिम सांस लींण ही वलु छाई,की तबरी विक्की बाबू की हवा लीक व्हेय ग्याई ," गीत "आँखों म़ा देखि की अस्धरा लोगों का ,अब कुछ और ना सोची भुल्ला ?२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई

यकुलांस

यकुलांस


दिल्ली माअज्काला कि सब्बि सुबिधाओं व्लाएक सांस बुझण्या फ्लैट माएतवारा का दिनजक्ख ब्वे सुबेर भट्टेय मोबाइल फ़र चिपकीं छाई बुबा टीवी मा वर्ल्ड कप खेल्ण मा लग्युं छाईऔर ६ बरसा कु एक छोट्टू नौनु वेडियो गेम मा मस्त हुयुं छाईवक्ख ६२ बरसा की एक बुडडिछत्ता का एक कुण मा यखुली बैठीं टक्क लगाकि असमान देख़न्णी मनं ही मनं मा झन्णी क्या सोच्णी छाई ?और झन्णी क्या खोज्णी छाई ?

हल्या नी मिलदु

गढ़वाली लेख (व्यंग ) : हल्या नी मिलदु

झंकरी बोडी कु नौनु प्रदेश भट्टेय बाल-बचौं दगडी १० साल बाद गढ़वाल घूमणा कु अन्यु छाई , कुछ दिन खुण इन्न लग्णु छाई की जन्न बोडी फर फिर से जान आये ग्ये व्होली ,नाती नतिणयु दगडी बोडी खुश दिखेणी छाई और नौना -बाला भी पहली बार स्यारा-पुन्गडा खल्याण , नयार,बल्द-बखरा और सुन्दर हैरा-भैरा डांडा देखि की भोत ही खुश हुन्या छाई,बुना छाई - दादी त्या अब हम यक्खी लहेंगे ?हाँ नौना की ब्वारी जरूर अन्गरौं की सी खईं सी लगणी छाई ?नौनल बवाल ब्वे अब ती खुण गढ़वाल मा क्यां की खैर च ? सड़क -पाणि,बिज़ली ,राशन -पाणि की दूकान ,डिश -टीवी ,फ्रिज ,गाडी सब्भी ता व्हेय गिन गौं मा अब आराम ही आराम चा त्वे खुण ब्वे अब त़ा
बस ब्बा बाकी त़ा सब ठीक चा पर अज्काल गढ़वाल मा "हल्या नी मिलदु " अबबोतल देय की भी ना

ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली व्यंग कथा

ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली व्यंग कथा

एक खाडू और एक खडूणी दगडी छन्नी का स्कूल मा पडदा छाई, धीरे-धीरे दुयुं मा प्यार व्हेय ग्याई ,सौं करार व्हेय ग्यीं की अब चाहे कुछ भी व्हेय जाव पर जोड़ी दगडी नी तोड़णी, साहब धूम धाम से व्हेय ग्या बल ब्यो खाडू और खडूणी कु , और कुछ साल मा व्हेय ग्यीं उन्का जोंल्यां नौना लुथी और बुथी
अब साहब लुथी और बुथी रोज सुबेर डांड जाण बैठी ग्यीं खाडू और खडूणी दगडी चरणा खूण ,हूँण लगीं ग्यीं ज्वाँनं दुया ,
लुथी और बुथी छोटम भटेय देख्दा आणा छाई , दिक्का दद्दी थेय ,बिचरी सदनी खैरी का बीठगा ही उठाणी राई ,लुथी और बुथी सदनी वीन्का आंखों मा अस्धरा ही देख्दा अयं पर बिचरा कब्भी वींकी खैर नी समझ साका आखिर उंल अब्भी सरया दुनिया देखि भी ता नी छैयी ,उंनकी दुनिया त बस गुठियार भटटी रौल और डांड तक ही बसीं छाई एक दिन लुथी ल बडू जिकुडू कैरी की खडूणी मा पूछ ही देय की माँ या बुडढी दद्दी क्वा च और सदनी रुन्णी ही किल्लेय रेंद यखुली यखुली ?
खडूणी ब्वाल म्यार थौला व दिक्का बोडी चा ,हमरा सो-सम्भल्धरा ,दिक्का बोडी कु एक नौनु चा ,जेथेय बोडी ल भोत ही लाड प्यार से भोत खैर खैकी की सैंत पालिकी अफ्फु भूखु रैकि अप्डू गफ्फ़ा खिल्लेकी बडू कार,फिर अपड़ी कुड़ी पुंगड़ी धैरी की, कर्ज -पात कैरी की पढ़ना खूण दूर प्रदेश भ्याज़ ,नौनु पड़ी लेखी की प्रदेश मा साहब बणी ग्या और प्रदेश मा ही ब्वारी कैरी की वक्खी बसी ग्या ,पर माँ या मा रुणा की क्या बात चा या ता दिक्का दद्दी खूण खुश हुण की बात चा ? बुथी ल खडूणी म ब्वाल ,
ऩा म्यार थौला तिल पूरी बात नी सुणि मेरी अब्भि ,नौनु ब्वे थेय मिलण खूण आई छाई एक बार और बोलण बैठी ग्या बोडी खूण " ब्वे त्यारू नौनु आज बडू साहब व्हेय ग्या प्रदेश मा और तू छेई की आज भी यक्ख घास कटणी ,मुंडम पाणि कु कस्यरा ल्याणी छेई और मोल लिप्णी छेई,कुई द्याखलू ता मेरी बड़ी बेज्ज़ती हूण या ,तू चल मी दगडी प्रदेश म़ा छोडिकी ये कंडण्या पहाड़ थेय,अब येल तिथेय कुछ नी दिणु ,ठाट से रैह प्रदेश म़ा अपडा नाती -नतिणु दगडी "
बोडी गुस्सा मा पागल सी व्हेय ग्या और एक झाँपट नौना पर लगाकि बोलंण बैठ "अरे निर्भगी जै धरती ल त्वे सैंति-पाली की ,लिखेय पड़ेय की यु दिन दिखाई आज त्वे वीन्ही धरती खूण ब्वे बुलंण मा भी शर्म चा आणि ,ता भोल तिल मेरी क्या कदर करण ? थू तेरी और थू च तेरी अफसर-गिरी खूण और थू च तेरी वीन्ही पडेय खूण जैंल त्वे थी थेय यु नी सिखाई की ब्वे सिर्फ और सिर्फ ब्वे हुन्द "
बस व्हेय का बाद भट्टेय बोडी गौं मा छेंदी -कुटुंब दरी मा यखुली रैन्द ,नौनु छोड़ी दियाई पर घार नी छ्वाडू,अप्डू पहाड़ नी छ्वाडू , धन्य हो बोडी और बोडी कु पहाड़ प्रेम
लुथी और बुथी चम् -चम् जवान हुणा छाई फिर बहुत दिनों बाद एक दिन खडूणी ल खाडू खूण ब्वाल " जी बुनेय आज यूँ थेय पल्या छाल कु बडू डांड दिखाई द्यावा , वक्ख खाण -पीणा की भी खैर नी चा ,और यूँ थेय सिखणु खूण भी सब्भी धाणी की सुबिधा रैली "
बस इतगा बात सुणिकी लुथी और रूण लग्गी ग्यीं और बुथी ल ब्वाल " माँ हम नी चाह्न्दा की प्रभात हम दुया भी दिक्का दद्दी का नौना जन व्हेय जौं र तू दिक्का दद्दी जन धरु धरु म़ा रुन्णी रै,माँ हम खूण ता हमर यु छोटू और रौन्तेलु डांड ही स्वर्ग बराबर चा और हमर गुठियार ही सब कुछ चा ,जख हमल जलंम धार ,दुसरा का डांड जैकी अपड़ी माँ थेय बिसराणं से ज्यादा हम अपडा ही डांड म़ा भूखी मोरुण पसंद करला "
बस इतगा सुणि की खडूणी और खाडू खुश व्हेय ग्यीं और लुथी- बुथी और खडूणी और खाडू सब दगडी मा प्यार प्रेम से फिर से रैंणं लगी ग्यीं

गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ

गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ

नयार का पल छाल ,बांज ,बुरांश और कुलाँ की डालियुं का छैल एक भोत ही सुन्दर और रौंत्यलू गौं छाई गौं की धार मा देबता कु एक मंदिर भी छाईउन् त गौं मा पंद्रह -बीस कुड़ी छाई पर चलदी बस्दी मौ द्वि- तीन ही छाई एक मौ छाई दिक्का बोडी की जू छेंद नौना ब्वारी का हुन्द भी गौं मा यखुली दिन कटणी छाई और ज्वा रोग से बिलकुल हण-कट बणी छाई , दूसरी मौ छाई पांचू ब्वाडा की ,बिचरा द्वी मनखी छाई कुल मिला की ,बोडी और ब्वाडा ,आन औलाद त भगवान् उन्का जोग मा लेख्णु ही बिसरी ग्या छाई और तीसरी मौ छाई जी बल झ्युन्तु काका की की जू रेंदु छाई काकी और अपड़ी नौनी दगड मा
अब साब किल्लेय की गौं मा मनखी त भोत की कम छाई इल्लेय दिक्का बोडी ल एक कुक्कर पाल द्ये छाई , बोडी ल स्वाच कि एक त कुक्कर धोक्का नी द्यालू ,दुसरू येका बाना फर द्वि गफ्फा रौट्टा का मी भी खौंलूँ
अब साहब कुक्कर थेय भी आखिर कैकू दगुडू चैणु ही छाई तब ,कुई नी मिलु त वेल मज़बूरी मा बिरलु और स्याल थेय अप्डू दगड़या बणा देय,अब कैल बोलुणु भी क्या छाई अब ,सब अप्डू अप्डू मतलब से ही सही पर कुल मिल्ला कि कटणा छाई अपड़ा अपड़ा दिन जन तन कैरी की
अब साहब दिक्का बोडी ल भी अपड़ी सब खैरी -विपदा का आंसू भोटू कुक्कर मा लग्गा ही याली छाई ,बिचरु भोटू बोडी थेय अपड़ा नौना से भी जयादा मयालु लगदु छाई
गौं कि धार मा देबता बांजा कि डाली मा अपड़ी खैर लगाणु छाई कि देख ले कन्नू ज़मनू आ ग्याई ये पहाड़ मा, ये गौं मा ,कभी सूबेर शाम आन्द -जांद मनखियुं कु धुदरट ह्युं रेन्दु छाई धार मा ,सूबेर शाम लोग- बाग़ मंदिर मा आन्दा जांदा छाई ,अपड़ा सुख -दुःख ,खैरी -विपदा मी मा लगान्दा छाई ,मी भी सरया दिन मस्त रेन्दु छाई खूब आशिर्बाद-प्रेम दींदु छाई उन्थेय पर अब त मी भी अणमिलु सी व्हेय ग्यु ,सालौं व्हेय ग्यीं मिथेय भी यकुलांश मा ,मनखियुं थे देख्यां
इन्नेह बांजा कि डाली भी अपड़ी जिकड़ी कि खैर लगाण लग्गी ग्या देबता मा और वक्ख ताल पंदेरू भी तिम्ला कि डाली क समणी टुप- टुप रुण लग्युं छाई बिचरू अपडा ज्वनि का वू दिन सम्लाणु छाई जब वेक ध्वार नजदीक गौं की ब्वारी - बेटीयूँ की सुबेर शाम कच्छडी लग्गीं रेंदी छाई और एक आजकू दिन च की कुई बिरडी की भी नी आन्दु वे जन्हे ? क्या कन्न यु दिन भी देख्णु रह ग्या छाई वेक भी जोग मा ?
अचांणचक से द्वि दिन बाद दिक्का बोडी सदनी खुण ये गौं और भोटू थेय छोडिकी परलोक पैट्टी ग्या छाई
अब साब बिरलु ठाट से डंडली मा ट्वटूगु व्हेय कि आराम से स्याल दगड गप ठोकणू छाई पर भोटू कुक्कर दिक्का बोडी की मौत से बहोत दुखी छाई आखिर बोडी की खैरी -विपदा भोटू से ज्यादा गौं मा और जंणदू भी कु छाई ?
अचांणचक से भोटू ल भोकुणु शुरू कैर द्या बिरलु थेय भारी खीज उठ ,वेक्की निन्द ख़राब जू हुणी छाई,आखिर वेल कुक्कर खूण ब्वाल - क्या व्हेय रे निर्भगी ,किल्लेय भोकुणु छाई सीत्गा जोर से ?
स्याल और मी त त्यारा दगडया व्हेय ग्योव अब ,और इन् तिल क्या देखि याल पल छाल भई की खडू व्हेय की गालू चिरफड़णू छेई तू ?
कुक्कर ल ब्वाल- यार तू भंड्या चकडैती ना कैर मी दगड मिल एक मनखी सी द्याखू छाई पल छाल अब्भी
बिरलु और स्याल चड़म से उठी की कुक्कर क समणी आ ग्यीं और पल छाल देखण लग्गी ग्यीं
बिरोला ल थोड़ी देर मा कुक्कर का कपाल फर खैड़ा की एक चोट मार और ब्वाल - अरे छुचा क्या व्हेय गया त्वे थेय ?
मी और स्याल त जाति का ही चंट छोव पर निर्भगी तू त कुक्कर छै कुक्कर ,कुछ त शर्म लिहाज़ कैरी दी ,और कुछ ना त बोडी का रौट्टा की ही सही कुछ त एहसान मानी दी जैखुंण तू भुक्णु क्या छै वू बोडी कु ही नौनु च रे , सैद बोडी की खबर सुणीक घार बोडिकी आणु च बिचरु
इत्गा सुणीक स्याल भी रम्श्यांण लग्गी ग्या ,सैद कुक्कर ल स्याल मा कुछ दिन पैली बोडी की खैरी ठुंगा याली छैय, स्याल ल ब्वाल अगर जू मी दानु नी हुन्दु त सेय थेय आज गौं मा आणि नी दिंदु ,पर क्या कन्न ?
बस जी फिर क्या छाई इत्गा सुणीक कुक्कर ल जोर जोर से भुक्णु शुरू कैरी द्याई
स्याल ल स्यू-स्यू ब्वाल और कुक्कर धुदरट कैरी की बोडी का नौना का जन्हे अटग ग्या ?

" दूर देश कू दर्द"

" दूर देश कू दर्द"
ग्यारह मार्च द्वी हजार ग्यारह,जै दिन,ऊगदा सूरज का देश,जापान मा,भूकंप अर सुनामिन,तबाह! करि सब्बि धाणी,मनख्यौं का मन मा,भौत दुःख अर कष्ट पैदा ह्वै,अपणा देश भारत मा,खास करिक उत्तराखण्ड मा,किलैकि, वख छन हमारा,भौत सारा प्यारा उत्तराखंडी,जू रोजगार करदा छन,दूर देश जापान मा,अर भौत प्यार करदा छन,अपणा जन्म स्थान,पराणु सी प्यारा उत्तराखण्ड तैं.
लगिं थै टक्क सब्यौं की,लंगि संग्यौं की, कै हाल मा होला,प्यारा प्रवासी उत्तराखंडी,जौंका कारण, "दूर देश का दर्द" सी,हमारू भिछ रिश्ता,किलैकि, मिनी जापान,घनसाली, टिहरी का नजिक छ, बल हमारा उत्तराखण्ड मा.

Local Langauge Of Uttrakhand("उत्तराखंड की लोक भाषा" )

"उत्तराखंड की लोक भाषा"
जै मनखि सनै निछ,
अपणि बोली भाषा कू ज्ञान,
बोली भाषा फर अभिमान,
सच मा ढुंगा का सामान,
अपणि बोली भाषा बिना,
क्या छ मनखि की पछाण?
कथगा प्यारी छन,
उत्तराखण्ड की लोक भाषा,
जुग-जुग तक फलु फूल्वन,
हर उत्तराखंडी की अभिलाषा.
प्रकृति, शैल-शिखर सी ओत प्रोत,
होन्दा छन उत्तराखंडी लोक गीत,
मन-भावन लगदा अपणि भाषा का,
जमीन सी जुड़याँ प्यारा गढ़वाळी,
कुमाऊनी, भोटिया, जौनसारी गीत.
भाषा का माध्यम सी होन्दु छ,
साहित्य अर संस्कृति कू सृंगार,
दिखेन्दि छ झलक अतीत की,
जुछ आज अनमोल उपहार.
अतीत सी कवि अर लेखक,
देवभूमि उत्तराखण्ड का,
कन्ना छन लोक भाषाओं कू,
अपणि रचनाओं मा सम्मान,
जागा! हे उत्तराखंडी भै बन्धो,
लोक भाषा छन हमारी धरोहर,
समाज अर संस्कृति की पछाण.
दर्द दिल मा भाषा का प्रति,
आज छ समय की पुकार,
प्रवासी उत्तराखंडी गौर करा,
हाथ तुमारा प्रचार अर प्रसार.
लोक भाषा फललि फूललि,
प्रसार कू संकल्प होलु साकार,
सार्थक होलु समाज कू प्रयास,
जरूर रंग ल्ह्यालु भविष्य मा,
अस्तित्व कायम रलु,
कवि "जिज्ञासु" की यछ आस.

Monday, April 18, 2011

Meri Janambhumi

मैंने जन्म लिया , पर्वतो की बीच घाटी में,और आ गया तब मैदान की तलहटी में,पड़ा लिखा नौकरी करने लगा,रोटी मिलने लगी, घर भूलने लगा,मैं ही क्या, सब भूल जाते हैं,तब जबकि वह सितारों की दुनिया में बसने लगते हैं,मैं भूल गया उस जन्मस्थली को, दुग्धपान कराने वाली जननी को,भावाभिव्यक्ति से क्या मैं, लौट रहा हूँ,या अनायास ही अपनी खामियों को व्यक्त कर रहा हूँ,कुछ भी हो यह मेरा वर्चस्व है,मुझे मालूम है की जन्मस्थली ही सर्वस्व है.